Saturday, November 26, 2011

सृष्टि का मूल तत्व कौन ? क्या आत्मा है? – क्या ज्ञान है? क्या दोनों एक हैं?


  क्या आत्मा है? क्या ज्ञान  है? क्या दोनों एक हैं?

पार्थ सूर्य ब्रह्माण्ड को, ज्योर्तिमय कर देत
वैसे ही यह आत्मा, क्षेत्र ज्योति भर देत ।। 33-13।
               आत्मा
जिस प्रकार सूर्य इस सम्पूर्ण सौर मण्डल को प्रकाशित करता है अर्थात सूर्य के कारण संसार है, जीवन है आदि  उसी प्रकार एक आत्मा सम्पूर्ण क्षेत्र को जीवन देता है, ज्ञानवान बना देता है क्रियाशील बना देता है
       ज्ञान
जिस प्रकार सूर्य इस सम्पूर्ण सौर मण्डल को प्रकाशित करता है अर्थात सूर्य के कारण संसार है, जीवन है आदि उसी प्रकार ज्ञान सम्पूर्ण क्षेत्र को जीवन देता है, ज्ञानवान बना देता है क्रियाशील बना देता है
1.    सृष्टि का मूल तत्व आत्मतत्व है वही सत् है, वही नित्य है, सदा है सृष्टि का मूल तत्व ज्ञान है वही सत् है, वही नित्य है, सदा है
2.    यह आत्मा सदा नाश रहित है यह ज्ञान सदा नाश रहित है
3.    आत्मा ने ही सम्पूर्ण सृष्टि को व्याप्त किया है ज्ञान ने ही सम्पूर्ण सृष्टि को व्याप्त किया है
4.    सृष्टि में कोई भी स्थान ऐसा नहीं है जहाँ आत्मतत्व होसृष्टि में कोई भी स्थान ऐसा नहीं है जहाँ ज्ञान न हो
5.    इस अविनाशी का नाश करने में कोई भी समर्थ नहीं है इस अविनाशी ज्ञान का नाश करने में कोई भी समर्थ नहीं है
6.    जीवात्मा इस देह में आत्मा का स्वरूप होने के कारण सदा नित्य है देह्स्थ ज्ञान  इस देह में ज्ञान का स्वरूप होने के कारण सदा नित्य है
7.    इस जीवात्मा के देह मरते रहते हैं इस देहस्थ ज्ञान के देह मरते रहते हैं

जब देह मरता है तो समझा जाता है सब कुछ नष्ट हो गया परन्तु ऐसा नहीं होता हैइसलिए भगवान श्री कृष्ण कहते हैं, जो इसे मारने वाला और मरणधर्मा मानता है, वह दोनों नहीं जानते हैं

8.यह आत्मा किसी को मारता है, मरता है यह ज्ञान   किसी को मारता है, मरता है
9.आत्मा अक्रिय अर्थात क्रिया रहित है अतः किसी को नहीं मारताज्ञान  अक्रिय अर्थात क्रिया रहित है अतः किसी को नहीं मारता
10.आत्मा नित्य अविनाशी है. ज्ञान नित्य अविनाशी है.
11.आत्मा किसी भी काल में नहीं मरता है ज्ञान किसी भी काल में नहीं मरता है
12.इस आत्मा का जन्म है न मरण है इस ज्ञान  का जन्म है न  मरण है
12.यह आत्मा जन्म लेता है किसी को जन्म देता है यह ज्ञान जन्म लेता है किसी को जन्म देता है
13.आत्मा हर समय नित्य रूप से स्थित है, सनातन है ज्ञान हर समय नित्य रूप से स्थित है, सनातन है
13.आत्मा को कोई नहीं मार सकता ज्ञान को कोई नहीं मार सकता
  केवल इसके देह नष्ट होते हैं केवल इसके देह नष्ट होते हैं
14.आत्मा को जो पुरुष नित्य, अजन्मा, अव्यय जानता है, उसे बोध हो जाता है. ज्ञान को जो पुरुष नित्य, अजन्मा, अव्यय जानता है, उसे बोध हो जाता है.
15.जीवात्मा के शरीर उसके वस्त्र हैं, जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है उसी प्रकार यह आत्मा पुराने शरीर त्याग कर नया शरीर धारण करता है. देहस्थ ज्ञान के शरीर उसके वस्त्र हैं, जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है उसी प्रकार यह ज्ञान पुराने शरीर त्याग कर नया शरीर धारण करता है.
16.आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते हैं.ज्ञान  को शस्त्र नहीं काट सकते हैं.
16.आत्मा को आग में जलाया नहीं जा सकता. ज्ञान को आग में जलाया नहीं जा सकता.
17.आत्मा को जल गीला नहीं कर सकता. ज्ञान को जल गीला नहीं कर सकता.
18.आत्मा को वायु सुखा नहीं सकती ज्ञान  को वायु सुखा नहीं सकती
19.आत्मा निर्लेप है, नित्य है, शाश्वत है ज्ञान निर्लेप है, नित्य है, शाश्वत है
20.आत्मा को छेदा नहीं जा सकता. ज्ञान  को छेदा नहीं जा सकता
21.देहस्थ आत्मा के शरीर उसके वस्त्र हैं, जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है उसी प्रकार यह ज्ञान पुराने शरीर त्याग कर नया शरीर धारण करता है. देहस्थ ज्ञान के शरीर उसके वस्त्र हैं, जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है उसी प्रकार यह ज्ञान पुराने शरीर त्याग कर नया शरीर धारण करता है.
22.आत्मा को जलाया नहीं जा सकता. ज्ञान को जलाया नहीं जा सकता.
23.आत्मा को गीला नहीं किया जा सकता. ज्ञान  को गीला नहीं किया जा सकता
24.आत्मा को सुखाया नहीं जा सकता. ज्ञान  को सुखाया नहीं जा सकता.
25.यह आत्मा अचल है, स्थिर है, सनातन है यह ज्ञान अचल है, स्थिर है, सनातन है
26.यह आत्मा व्यक्त नहीं किया जा सकता है. ज्ञान  अनुभूति का विषय है
27.आत्मा अनुभूति का विषय है ज्ञान  अनुभूति का विषय है
28.आत्मा का चिन्तन नहीं किया जा सकता. ज्ञान का चिन्तन नहीं किया जा सकता.
29.आत्मा बुद्धि से परे है ज्ञान बुद्धि से परे है बुद्धि ज्ञान द्वारा संचालित होती है.
30.आत्मा विकार रहित है. ज्ञान विकार रहित है
31.आत्मा सदा  अक्रिय है ज्ञान सदा  अक्रिय है
32.देह में आत्मा क्रियाशील और मरता जन्म लेता  दिखायी देता है. इस देह में ज्ञान क्रियाशील और मरता जन्म लेता  दिखायी देता है.
33.आत्मतत्त्व एक आश्चर्य है, आश्चर्य इसे इसलिए कहा है कि अक्रिय होते हुए भी यह सब कुछ करता दिखायी देता हैज्ञान एक आश्चर्य है, आश्चर्य इसे इसलिए कहा है कि अक्रिय होते हुए भी यह सब कुछ करता  दिखायी  देता है
34.आत्मा निराकार है. ज्ञान निराकार है.
35.आत्मा अजन्मा है, फिर भी जन्म लेते हुए, मरते हुए  दिखायी देता है. ज्ञान अजन्मा है, फिर भी जन्म लेते हुए, मरते हुए  दिखायी देता है
36.आत्मा इस देह में अवध्य है.  ज्ञान  इस देह में अवध्य है.
37.आत्मा को कैसे ही, किसी भी प्रकार, किसी के द्वारा नहीं मारा जा सकता. ज्ञान  को कैसे ही, किसी भी प्रकार, किसी के द्वारा नहीं मारा जा सकता.
38.आत्मा मरण धर्मा प्राणी अथवा पदार्थ नहीं है ज्ञान मरण धर्मा प्राणी अथवा पदार्थ नहीं है
39.आत्मा ही विश्वात्मा है. इस शरीर में आत्मा ही अधिदैव और अधियज्ञ दोनों रूप से प्रतिष्ठित हैंअधिदैव के रूप में वह कर्ता भोक्ता है तो अधियज्ञ के रूप में दृष्टा है ज्ञान ही विश्वात्मा है. इस शरीर में ज्ञान ही अधिदैव और अधियज्ञ दोनों रूप से प्रतिष्ठित हैंअधिदैव के रूप में वह कर्ता भोक्ता है तो अधियज्ञ के रूप में दृष्टा है
40.आत्मा ही सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति का कारण है. ज्ञान ही सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति का कारण है.
41.आत्म शक्ति से ही यह सम्पूर्ण जगत चेष्टा करता है श्री ब्रह्मा और श्री हरि विष्णु आत्म शक्ति से ही उत्पत्ति एवं जगत पालन का कार्य करते हैं ज्ञान  शक्ति से ही यह सम्पूर्ण जगत चेष्टा करता है श्री ब्रह्मा और श्री हरि विष्णु ज्ञान  शक्ति से ही उत्पत्ति एवं जगत पालन का कार्य करते हैं
42.आत्मा ही इस सृष्टि का आदि अन्त और मध्य है अर्थात सम्पूर्ण सृष्टि आत्मा से ही जन्मती है, आत्मा में ही स्थित रहती है और आत्मा में ही ही लय हो जाती हैआत्मा ही सृष्टि का बीज है और सृष्टि का विस्तार भी आत्मा ही है और यह जगत आत्मा का ही रूप हैज्ञान ही इस सृष्टि का आदि अन्त और मध्य है अर्थात सम्पूर्ण सृष्टि ज्ञान से ही जन्मती है, ज्ञान में ही स्थित रहती है और ज्ञान में ही ही लय हो जाती हैज्ञान ही सृष्टि का बीज है और सृष्टि का विस्तार भी ज्ञान ही है और यह जगत ज्ञान का ही रूप है
43.आत्मा की ज्ञान शक्ति ही क्रियाशक्ति उत्पन्न करती हैउससे सभी प्रकृति के तत्व बुद्धि मन इन्द्रियाँ अनेकानेक कार्य करने लगती हैंआत्मा सदा अकर्ता अक्रिय हैज्ञान  की ज्ञान शक्ति ही क्रियाशक्ति उत्पन्न करती हैउससे सभी प्रकृति के तत्व बुद्धि मन इन्द्रियाँ अनेकानेक कार्य करने लगती हैंज्ञान सदा अकर्ता अक्रिय है
44.सृष्टि का मूल तत्व आत्मतत्व है वही सत् है, वही नित्य है, सदा हैअसत् जिसे जड़ या माया कहते हैं, यह वास्तव में है ही नहींजब तक पूर्ण ज्ञान नहीं हो जाता तब तक सत् और असत् अलग अलग दिखायी देते हैंज्ञान होने पर असत् का लोप हो जाता है वह ब्रह्म में तिरोहित हो जाता हैउस समय दृष्टा रहता है   दृश्यकेवल आत्मतत्व जो नित्य है, सत्य है, सदा है, वही रहता है सृष्टि का मूल तत्व ज्ञान है वही सत् है, वही नित्य है, सदा हैअसत् जिसे जड़ या माया कहते हैं, यह वास्तव में है ही नहींजब तक पूर्ण ज्ञान नहीं हो जाता तब तक सत् और असत् अलग अलग दिखायी देते हैंज्ञान होने पर असत् का लोप हो जाता है वह ब्रह्म में तिरोहित हो जाता हैउस समय दृष्टा रहता है   दृश्यकेवल आत्मतत्व जो नित्य है, सत्य है, सदा है, वही रहता है
45.आत्मा परम बोध है. ज्ञान को प्राप्त होना ही परम बोध है.
46.आत्मा महाबुद्धि है. ज्ञान महाबुद्धि है.
47.आत्मा ही ईश्वर है, वही ब्रह्म, परब्रह्म है परम बोध है, अस्मिता है. ज्ञान ही ईश्वर है, वही ब्रह्म,परब्रह्म है परम बोध है, अस्मिता है.
48.आत्मा ही सत् चित आनन्द है. ज्ञान ही सत् चित आनन्द है.
49.आत्मा आकाश के समान निर्लेप और सूर्य के समान अप्रकाश्य है. ज्ञान आकाश के समान निर्लेप और सूर्य के समान अप्रकाश्य है.
    50.सृष्टि का मूल तत्व आत्मतत्व है. सृष्टि का मूल तत्व ज्ञान  है.
इस मूल तत्त्व की उपलब्धि परम बोध होने पर ही होती है.ज्ञान ही पूर्णता है.

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2 comments:

  1. वाह क्या तुलना की है यह आपकी सुक्ष्म बुद्धि की एक सुन्दर अभिव्यक्तिहै.
    इस अर्थ से यहपता चलता है कि ज्ञान औरआत्मा एक ही हैं,मुझेऐसा लगता है किदोनों एक होने के बाद भीज्ञान आत्मा के मुकाबले व्यापक है आत्मा ज्ञान का अंश है इसी कारण उसमे ज्ञान की सारीं प्रोपर्टीज मौजूदहै.
    कृपया मुझे समझाये

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  2. प्रिय कान्हा,
    आत्मा नित्य बोध स्वरूप है अर्थात नित्य ज्ञान स्वरूप है. आत्मतत्त्व अव्यक्त स्थिति है और नित्य ज्ञान उसकी स्वरूप स्थिति है. नित्य ज्ञान आत्मा का लक्षण, उसकी सत्यता का सूचक है. शुद्ध विज्ञानघन आत्मा का ही ज्ञान स्वरूप सब प्राणियों के बाहर भीतर स्तिथ है. सरल रूप में सूर्य और सूर्य ऊर्जा के समान दोनों एक हैं.

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