Sunday, November 20, 2011

गीता का बुद्धि प्रबंधन- उत्तम शिक्षा उत्तम राष्ट्र

विद्या मस्तिष्क की जड़ता का हरण करती है, जडता जाती है तो स्मृति बड़ती है और स्मृति बड़ने से बुद्धि का विकास होता है.

बुद्धि किसी भी प्राणी को दिया परमात्मा का सबसे बड़ा वरदान है. इस बुद्धि  के कारण ही मनुष्य अन्य जीवों से श्रेष्ठ है और बुद्धि ही परमात्मा को पाने का एक मात्र अवलम्ब है. परन्तु यह बुद्धि  भी  मनुष्य के वश में नहीं रहती क्योंकि  पुरुष में आसक्ति इतनी प्रबल होती है कि यह आसक्ति नाश   होने के कारण चंचल स्वभाव वाली इन्द्रियां, रात दिन प्रयत्न करने वाले बुद्धिमान मनुष्य की बुद्धि को अपने प्रभाव से बल पूर्वक हर लेती है अर्थात यत्नशील बुद्धिमान पुरुष भी इन्द्रियों के वेग के सामने लाचार हो जाता हैश्री भगवान कहते हैं

विषय विचरती इन्द्रियां, जब मन उनके साथ
इन्द्रिय हरण करें प्रज्ञा का, वायु नाव जल में हरे।। 67-2।।

विषयों में विचरती हुयी इन्द्रियों के साथ अथवा किसी एक इन्द्री के साथ मन रहता है, वह एक इन्द्री पुरुष की बुद्धि का हरण उसी प्रकार कर लेती है जैसे पानी में नाव का वायु हरण कर लेती है अर्थात साधक पथ भ्रष्ट हो जाता हैनाव विपरीत दिशा की ओर वायु वेग से बहने लगती है, उसी प्रकार साधक की बुद्धि विपरीत हो जाती है

सामान्यतः मनुष्यों में तीन  प्रकार की बुद्धि मिलती है.भगवदगीता ने इसे सात्विक राजसी औत तामसी बुद्धि कहा है.

सात्विक बुद्धि

जो बुद्धि क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए अर्थात कर्म, अकर्म, विकर्म को भली भांति जानती है, जिस बुद्धि से सभी प्राणी अभय पाते हैं तथा जो बन्धन और मोक्ष को जानती है अर्थात देह भाव, आसक्ति, संकल्प, कर्मफल की इच्छा बन्धन है और अनासक्त और समत्व भाव मुक्ति है, इसे यथार्थ से जानती हैजिस बुद्धि को यथार्थ का ज्ञान है, जो बुद्धि सोच समझ कर  आचरण करती है जिस बुद्धि को धर्म अधर्म का ज्ञान है वह बुद्धि सात्विक है

राजसी बुद्धि

जिस बुद्धि के द्वारा मनुष्य धर्म और अधर्म के विषय में नहीं जानता कि क्या कर्म है, क्या अकर्म है, क्या विकर्म है? जिस बुद्धि को यथार्थ का ज्ञान नहीं है, जो बुद्धि बिना सोचे समझे अच्छे और बुरे का आचरण करती है, वह राजसी बुद्धि है

तामसी बुद्धि

अधर्म धर्म है मानती तामस से आवृत्त
सभी अर्थ विपरीत ले बुद्धि तमस हे पार्थ।। 32-18।।

तमोगुण से घिरी हुई बुद्धि अधर्म को धर्म मान लेती हैजो दिन को रात समझ ले, उस  बुद्धि में मूढ़ता भरी हैइस कारण सम्पूर्ण पदार्थों को विपरीत मान लेती हैऔषधि उसे जहर दिखायी देती है, जो पदार्थ उसके लिए जहर हो वह औषधि दिखायी दे, वह बुद्धि तामसी है

मनुष्य का पहला धर्म, पहला कर्त्तव्य बुद्धि को सात्विक करना है इसलिये शिक्षा एवम विद्यार्जन के साथ आचरण पर सदा जोर दिया गया. परन्तु आज देश के अधिकांश राज्यों के स्कूल और महाविद्यालयों में या तो शिक्षक नहीं हैं और जो हैं उनमें अधिकतर पढ़ाते नहीं हैं. घर में आचरण है घर के बाहर. यही स्थिति स्कूलों की है तो फिर रज और तमोगुण से घिरी हुई बुद्धि कैसे दूर होगी. अतःशिक्षा में युद्ध स्तर   पर सुधार कर गुणवत्तायुक्त शिक्षा व्यवस्था आवश्यक है.  
यह हृदय में बैठाना होगा, विद्या मस्तिष्क की जड़ता का हरण करती है, जडता जाती है तो स्मृति बड़ती है और स्मृति बड़ने से बुद्धि का विकास होता है. अतः उत्तम शिक्षा उत्तम राष्ट्र इक्कसवीं शदी का कर्त्तव्य और नारा होना चाहिए.


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