Sunday, November 13, 2011

ज्ञान यज्ञ

यज्ञ परब्रह्म स्वरूप हैप्रत्येक क्रिया ब्रह्म भाव रखनेवाला ब्रह्म को पाता है.
श्री भगवान द्वारा भगवद गीता के चौथे अध्याय में स्वरूप स्थिति का बोध कराने वाले विभिन्न प्रकार के  यज्ञों को बताया है परन्तु ज्ञान यज्ञ को सर्वश्रेष्ठ माना है. श्री भगवान कहते हैं इस संसार में ज्ञान (बोध) के समान पवित्र करने वाला वास्तव में कुछ भी नहीं है.

ब्रह्म अर्पण ब्रह्म हवि, अग्नि आहुति ब्रह्म है
स्थित योगी ब्रह्म कर्म में, हेतु उसका ब्रह्म है।। 24।।

अर्पण ही ब्रह्म है, हवि ब्रह्म है, अग्नि ब्रह्म है, आहुति ब्रह्म है, कर्म रूपी समाधि भी ब्रह्म है और जिसे प्राप्त किया जाना है वह भी ब्रह्म ही हैइस सृष्टि से हमें जो भी प्राप्त है, जिसे अर्पण किया जा रहा है, जिसके द्वारा हो रहा है, वह सब ब्रह्म स्वरूप है अर्थात सृष्टि का कण कण, प्रत्येक क्रिया में जो ब्रह्म भाव रखता है वह ब्रह्म को ही पाता है अर्थात ब्रह्म स्वरूप हो जाता है ।      
कर्म योगी देव यज्ञ का अनुष्ठान करते हैं तथा ज्ञान योगी ब्रह्म अग्नि में यज्ञ द्वारा यज्ञ का हवन करते हैंदेव पूजन उसे कहते हैं जिसमें योग द्वारा अधिदैव को जानने का प्रयास किया जाता हैकई योगी ब्रह्म अग्नि में आत्मा को आत्मा में हवन करते हैं अर्थात अधियज्ञ का पूजन करते हैं
कई योगी इन्द्रियों के विषयों को रोककर अर्थात इन्द्रियों को संयमित कर हवन करते हैं, अन्य योगी शब्दादि विषयों को इन्द्रिय रूप अग्नि में हवन करते है अर्थात इन्द्रिय विषयों को रोककर हवन करते है
कई योगी सभी इन्द्रियों की क्रियाओं एवं प्राण क्रियाओं को एक करते हैंइन सभी वृत्तियों को करने से ज्ञान प्रकट होता है ज्ञान के द्वारा आत्म संयम योगाग्नि प्रज्वलित कर सम्पूर्ण विषयों की आहुति देते हुए आत्म यज्ञ करते हैं
इस प्रकार भिन्न भिन्न योगी द्रव्य यज्ञ तप यज्ञ तथा दूसरे योग यज्ञ करने वाले है और कई तीक्ष्णव्रती होकर योग करते हैं अर्थात शब्द में शब्द का हवन करते हैइस प्रकार यह सभी कुशल और यत्नशील योगाभ्यासी पुरुष जीव बुद्धि का आत्म स्वरूप में हवन करते हैं
कई योगी अपान वायु में प्राण वायु का हवन करते हैं तथा कई प्राण वायु में अपान वायु का हवन करते हैंकई दोनों प्रकार की वायु, प्राण और अपान को रोककर प्राणों को प्राण में हवन करते हैं
कई सब प्रकार के आहार को जीतकर अर्थात नियमित आहार करने वाले प्राण वायु में प्राण वायु का हवन करते हैंइस प्रकार यज्ञों द्वारा काम क्रोध एवं अज्ञान रूपी पाप का नाश करने वाले सभी; यज्ञ को जानने वाले हैं अर्थात ज्ञान से परमात्मा को जाने लेते हैं
यज्ञ से बचे हुए अमृत का अनुभव करने वाले पर ब्रह्म परमात्मा को प्राप्त होते हैं अर्थात यज्ञ क्रिया के परिणाम स्वरूप जो बचता है वह ज्ञान ब्रह्म स्वरूप हैइस ज्ञान रूपी अमृत को पीकर वह योगी तृप्त और आत्म स्थित हो जाते हैं परन्तु जो यज्ञाचरण नहीं करते उनको इस लोक में कुछ हाथ लगता है परलोक में
इस प्रकार बहुत प्रकार की यज्ञ विधियां वेद में कही हैंतू यह जान ले कि यह यज्ञ विधियां कर्म से ही उत्पन्न होती हैंइस बात को जानकर कर्म की बाधा से तू मुक्त हो जायेगा
प्रज्ज्वलित अग्नि सभी काष्ठ को भस्म कर देती है उसी प्रकार ज्ञानाग्नि सभी कर्म फलों को; उनकी आसक्ति को भस्म कर देती है
इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला वास्तव में कुछ भी नहीं है क्योंकि जल, अग्नि आदि से यदि किसी मनुष्य अथवा वस्तु को पवित्र किया जाय तो वह शुद्धता और पवित्रता थोड़े समय के लिए ही होती है, जबकि ज्ञान से जो मनुष्य पवित्र हो जाय वह पवित्रता सदैव के लिए हो जाती हैज्ञान ही अमृत है और इस ज्ञान को लम्बे समय तक योगाभ्यासी पुरुष अपने आप अपनी आत्मा में प्राप्त करता है क्योंकि आत्मा ही अक्षय ज्ञान का श्रोत है

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2 comments:

  1. प्रशसनीय विचार (सृष्टि का कण कण, प्रत्येक क्रिया में जो ब्रह्म भाव रखता है वह ब्रह्म को ही पाता है अर्थात ब्रह्म स्वरूप हो जाता है ।)

    (ज्ञान से जो मनुष्य पवित्र हो जाय वह पवित्रता सदैव के लिए हो जाती है।)
    ऐसा हो जाए इसके लिये कोई बेहतर उपाय सुझाय

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  2. ज्ञान से ज्ञान जो आपके अंदर है उसे देखें, महसूस करें.

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