Saturday, December 17, 2011

बोध के साधन- धर्म चाय की चुस्की नहीं है, धर्म के लिए ऑक्सिजन की तरह सतत व्यवहार की आवश्यकता है.-Prof.Basant


                            बोध के साधन
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1.अष्टांग योग-शारीरिक और मानसिक तप द्वारा परम बोध को उपलब्ध होना. शरीर प्राण और बुद्धि के संतुलन से बोध की प्राप्ति की जाती है.
2.ज्ञान योग- परम बोध को सूक्ष्म बुद्धि द्वारा जानना. संसार में फैली बुद्धि को एक विचार में केंद्रित कर बुद्धि को सूक्ष्म किया जाता है.
3.कर्म योग अनासक्त स्वाभविक कर्म से परम बोध को उपलब्ध होना.
4.भक्ति योग ईश्वर के प्रति अनन्य प्रेम, अनुराग द्वारा भावातीत होना.
5.राज योग- इन्द्रियों, मन बुद्धि को स्थिर करना. इस प्रकार मस्तिष्क को नियंत्रित करना. ज्ञान योग और राज योग एक ही हैं.
6.लय योग अष्टांग योग अथवा हठ योग द्वारा कुण्डलिनी जागरण करना और उसे विभिन्न बंद लगाकर आज्ञा अथवा सहस्त्रार तक पहुँचाना.
7.अहँकार योग- अपने  क्षुद्र मैं को परमात्मा का मैं मानना और तदनुसार आचरण करना. अपने लिए जीव भाव न रखकर ब्रह्म भाव रखना. अपने मैं को विराट करना.
8.सेवा योग- हरी बोधमयी दृष्टि रखते हुए सभी जड़ चेतन की सेवा करना. सबका कल्याण करना. यही शिव योग भी है.
9.क्रिया योग- ज्ञान योग और लय योग का मिश्रण है. महर्षि पतंजलि ने तप स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान को क्रिया योग का अंग माना है.
10.प्राण योग प्राण और अपान की गति रोककर अथवा प्राण की गति सम कर कुण्डलिनी जागरण किया जाता है.
11.मृत्यु योग- शरीर से बाहर निकलने की क्रिया का अभ्यास मृत्यु योग है.
12.शब्द योग- ईश्वर को प्रिय नाम से पुकारना. भगवद्गीता ॐ को ईश्वर का नाम मानती है. ॐ का व्यवहार में स्मरण शब्द योग है.
13.साक्षी योग वेदान्त, भगवद्गीता ने इसे सर्वोत्तम और सहज योग स्वीकारा है. महावीर स्वामी का सूत्र है- असुत्तो मुनि. आज विपश्यना अतवा विपासना के नाम से इसी योग को सिखाया जाता है.

सहज योग,समता योग आदि अनेक योग वेद, वेदान्त, भगवद्गीता, कपिल, पतंजलि और अनेक संतों द्वारा प्रतिपादित और विकसित किये. इन सभी में बुद्धि, प्राण और शरीर की अलग अलग क्रिया बतायी गयी है परन्तु अंतिम विकल्प केवल बुद्धि है. शरीर और प्राण साधना से आगे का मार्ग सरल हो जाता है और बुद्धि को सूक्ष्म करने में मदद मिलती है.
संक्षेप में यह सब योग बुद्धि योग के ही भिन्न भिन्न स्वरूप हैं. किसी में शारीरिक क्रिया महत्वपूर्ण है तो किसी में बौद्धिक क्रिया और किसी में दोनों का संतुलन परन्तु बुद्धि सभी योग साधनों में महत्वपूर्ण है और बिना बुद्धि के कोई साधन नहीं हो सकता. अपने स्वभाव, शरीर, प्राण और बुद्धि के अनुसार किसी भी योग जो सरल लगे को साधक अपना सकता है. कृपया यह न भूलें कि धर्म चाय की चुस्की नहीं है, धर्म के लिए ऑक्सिजन की तरह सतत योग साधन की आवश्यकता है.

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