ईश्वर का रास्ता
जब किसी मनष्य को अनजान जगह और उसका रास्ता मालूम नहीं होता तो वह अनेक व्यक्तियों से जगह और रास्ते के बारे में पूछता है. इसी प्रकार असाध्य रोग से ग्रसित व्यक्ति अपने इलाज के लिए अनेक चिकित्सकों के पास जाता है और अनेकों से रोग के निदान का उपाय पूछता है. इसी प्रकार परमात्मा की ओर जाने वाला रास्ता भी अनजान है. अतः इस मार्ग के साधक को भी अनेक पथ प्रदर्शक ज्ञानियों और ग्रंथों का सहारा लेना जरूरी है. विडम्बना है कि गुरुडम के कारण आधुनिक गुरु और धर्मोपदेशक कहते हैं केवल मेरा धर्म, मेरा रास्ता ही सही है. इस प्रकार चेलों
की जमात और
फौज खड़ी कर लेते हैं.
अंध अंध दे ज्ञान.
वेदान्त और भगवद्गीता का स्पष्ट निदेश है कि ईश प्रप्ति के
मार्ग में आप जितने चाहें उतने तरीके या अधिक से अधिक तरीके जो आपको रुचिकर लगें, आपके स्वाभाव के अनुकूल
हों अपना सकते हैं. महात्मा बुद्ध, बोध से पहले अनेक ज्ञानी साधकों
के पास गये थे. भगवान दतात्रेय के
२४ गुरु थे. रामकृष्ण परमहंस के भी अनेक गुरु थे आदि.
हिंदू, मुसलमान, ईसाई
आदि होना सरल है क्योंकि जन्म से आपको यह अधिकार मिल जाता है परन्तु बोध का रास्ता
तो स्वयं खोजना होगा और जब तक स्वतंत्र सोच नहीं होगी तब तक आप बोध से कोसों दूर
हैं और बिना बोध के परमतत्त्व प्राप्त नहीं होता.
...................................................................................